राजनीति | 10-02-2018
अब तक आपने पुलिस की कार्यप्रणाली के खट्टे-मीठे अनुभव बहुत देखे और सुने होंगे किन्तु लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ मीडिया के अनुभव शायद कभी-कभी महसूस किये होंगे या सुने होंगे लेकिन मेरे साथ घटी घटना को सुनकर शायद लोकतंत्र शर्मिंदा हो जाये लेकिन दोलत के भूखे भेड़ियों की सेहत पर इसका कोई असर पड़ेगा इसकी मुझे भी कल्पना नहीं है। वैसे मैने ढ़ाई दशक के पत्रकारिता के कार्यकाल में अपनी कलम के माध्यम से हजारों पीड़ितों की निस्वार्थ मदद कर उन्हैं राहत दिलाई है लेकिन पिछले दिनों 20 फरवरी को मेरे कार्यालय के बाहर से मेरी बाइक न. यूपी 85 यू 5666 चोरी हुई तो मुझे पुलिस के साथ-साथ मीडिया के सहयोग की जरूरत महसूस हुई। जिसमें पहले तो मुझे पुलिसिया कार्यशैली का सामना करना पड़ा और मथुरा कोतवाल से तड़का-भड़की हुई और जिसके चलते तहरीर लेने से इंकार कर दिया गया। इसकी जानकारी मैने सभी मीडिया कर्मियों को लिखित तथा मोबाइल द्वारा दिये जाने के बावजूद भी दो-तीन पत्रकारों ने जो पुलिस की दलाली से दूर रहते हैं उन्होंने तो बाइक चोरी का समाचार प्रकाशित किया लेकिन प्रमुख समाचार पत्र एवं पत्रकार बाइक चोरी की घटना को छिपा गये। मेरे द्वारा करीब दो दर्जन करीब पत्रकारों से सहयोग की अपेक्षा की लेकिन कोई कोई मेरे साथ मदद के लिए खड़ा हुआ नजर नहीं आया। बल्कि कोतवाली पुलिस द्वारा पकड़े गये बाइक चोर गैंग की मदद करते हुऐ कई पत्रकार कोतवाली के चक्कर लगाते नजर आये। इसके अलावा कई लोग मुझे मीडिया कर्मियों को पार्टी, गिफ्ट, लिफाफा उनके साथ खर्चा करने या फिर पुलिस से लेन-देन कर एफआईआर दर्ज कराने का सुझाव देते रहे। जिसे मेरे जमीर ने मंजूर नहीं किया।