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    कोटद्वार !

    वर्ष 1955 में प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू रूस की यात्रा पर थे। वहां महाकवि कालीदास के महान नाटक अभिज्ञान शाकुंतलम के मंचन के दौरान एक रूसी कलाकार ने पंडित नेहरू से कण्वाश्रम के बारे में पूछा, लेकिन उन्हें इसकी जानकारी न थी। सो, वापस लौटते ही उन्होंने उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. संपूर्णानंद को अभिज्ञान शाकुंतलम में वर्णित कण्वाश्रम की खोज का दायित्व सौंपा। प्राचीन ग्रंथों, पुरातात्विक अवशेषों व शोध से प्रमाणित हुआ कि गढ़वाल जिले में कोटद्वार शहर से 12 किमी दूर मालिनी नदी के तट पर कण्वाश्रम रहा होगा। 

     आज भी गुमनाम

    वर्ष 1956 में पं.नेहरू व डॉ. संपूर्णानंद के निर्देश पर ही वसंत पंचमी के दिन तत्कालीन वन मंत्री जगमोहन सिंह नेगी ने कोटद्वार पहुंचकर चौकीघाटा के पास आधुनिक कण्वाश्रम की नींव रखी थी। ध्येय था जिस चक्रवर्ती सम्राट भरत के नाम पर देश का नाम भारतवर्ष पड़ा, उसकी जन्मस्थली से देश-दुनिया को परिचित कराना। मगर, अफसोस! महर्षि कण्व का यह आश्रम आज भी गुमनामी के अंधेरे में है। 

      

    यह है इतिहास

    पौराणिक ग्रंथों में उल्लेख है कि एक दौर में यहां दस सहस्र विद्यार्थी अध्ययन किया करते थे। मालिनी नदी के तट पर स्थित कण्वाश्रम का वर्णन तमाम पौराणिक ग्रंथों में मिलता है। स्कंद पुराण के 57वें अध्याय में उल्लेख है कि मालिनी नदी के तट पर जो कण्वाश्रम नंदगिरि तक विस्तृत है, वहां संपूर्ण लोकों में विख्यात महातेजस्वी कण्व ऋषि का आश्रम है। यहां शीश नवाने पर सुख व शांति प्राप्त होती है। दरअसल, उस काल में कण्वाश्रम आध्यात्म एवं ज्ञान-विज्ञान का केंद्र ही नहीं, महर्षि कण्व की तपस्थली, मेनका-विश्वामित्र, शकुंतला व राजा दुष्यंत की प्रणय स्थली व उनके तेजस्वी पुत्र भरत की जन्म स्थली रहा है। महाभारत के संभव पर्व-72 में भी इसका उल्लेख हुआ है। कहा जाता है कि 1192 ईस्वी में दिल्ली में हुकूमत कायम करने के बाद मोहम्मद गौरी ने देश के धार्मिक एवं सांस्कृतिक स्थलों को तहस-नहस कर दिया। इनमें कण्वाश्रम भी शामिल था। 

    यह है वर्तमान स्थिति 

    कण्वाश्रम को राष्ट्रीय फलक पर लाने के लिए सरकारें भले ही तमाम दावे करती रही हों, लेकिन कण्वाश्रम आज भी गुमनामी के अंधेरे में है। जबकि, प्रकृति लगातार संकेत दे रही है कि इस पावन स्थली के गर्भ में एक समृद्ध सभ्यता छिपी है। अब भारतीय पुरातत्व विभाग इसे गंभीरता से लेते हुए एक बड़ा प्रयास करने की योजना बना रहा है। अस्सी के दशक में कण्वाश्रम क्षेत्र में बरसाती नाले ने भयंकर तबाही मचाई। तब कई प्राचीन मूर्तियां व स्तंभ धरती के गर्भ से बाहर आ गए।

    बाद में प्रशासन ने मौके से मिली कुछ मूर्ति व स्तंभों को कण्वाश्रम स्थित स्मारक में रखवा दिया। गढ़वाल विवि के प्राचीन इतिहास, संस्कृति व पुरातत्व विभाग की टीम ने भी तीन मूर्तियों व दो स्तंभों को अपने संग्रहालय में रखा है। ये मूर्तियां व स्तंभ दसवीं व 12वीं शताब्दी के हैं। इस कालखंड में उत्तराखंड में कत्यूरी वंश का एकछत्र राज था। कण्वाश्रम पर शोध कर रहे डॉ. दिवाकर बेबनी बताते हैं कि यदि मालन घाटी को खंगाला जाए तो यहां अनेक मंदिर मिल सकते हैं। बीते तीन व पांच अगस्त को क्षेत्र में आई प्राकृतिक आपदा के दौरान भी भूगर्भ से मूर्तियां बाहर निकली थीं।

    स्वर्णिम इतिहास की गवाही देगी सम्राट भरत की जन्मस्थलीस्कंद पुराण के 57वें अध्याय में उल्लेख है कि मालिनी नदी के तट पर जो कण्वाश्रम नंदगिरि तक विस्तृत है, वहां संपूर्ण लोकों में विख्यात महातेजस्वी कण्व ऋषि का आश्रम है।

     

    अधीक्षण पुरातत्वविद (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, देहरादून) लिली धस्माना का कहना है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की टीम ने खोदाई की अनुमति मांगने के साथ ही कण्वाश्रम का साइट मैप तैयार कर उसे महानिदेशक को भेज दिया है। अनुमति मिलते ही कण्वाश्रम में खोदाई का कार्य शुरू कर दिया जाएगा।