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    नई दिल्ली। 

    गुजरात चुनाव के मोर्चे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के बीच ज़ुबानी जंग छिड़ी हुई है. इसे दोयम दर्जे की गाली-गलौच ही कहा जा सकता है.

    इस छिछोरी बयानबाजी में ताजा हमला कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने किया है. राहुल ने फ्रांस के साथ 36 रफाल लड़ाकू विमान खरीदने के सौदे पर सवाल उठाए हैं. राहुल गांधी ने आरोप लगाया है कि प्रधानमंत्री मोदी ने एक उद्योगपति को फायदा पहुंचाने के लिए ये लड़ाकू विमान ऊंची कीमत पर खरीदे. हालांकि इस इल्जाम के साथ राहुल गांधी ने कोई सबूत नहीं पेश किए.

    ये कोई खजाने की तलाश तो नहीं है, जिसमें आप एक के बाद एक सुराग बताते हों. भई, अगर आप के पास सबूत हैं, तो उनको सामने रखिए.

    बेहतर होता कि आरोप लगाने के साथ राहुल गांधी कुछ सबूत भी देश के सामने रखते. इसके बजाय उन्होंने लोगों को अटकलें लगाने दिया है. बिना सबूतों के सिर्फ आरोप लगाना बहुत आसान है. सवाल ये है कि जब 8.9 अरब डॉलर का ये सौदा हो चुका है. बात काफी आगे बढ़ चुकी है, तो आरोपों के तीर छोड़ने का मतलब क्या है?

    हम में से किसी को भी नहीं मालूम है कि विमान की क्या कीमत तय हुई. सौदे की शर्तें भी हमें नहीं मालूम. ऐसे में हम जो जानकारी है उसके आधार पर अटकलें ही लगा सकते हैं.

    दूसरों से बेहतर कीमत पर हुआ है सौदा

    आज की तारीख में अगर इस सौदे से किसी को नाराज होना चाहिए, तो वो हैं मिस्र और कतर. मिस्र ने 24 रफाल फाइटर करीब 5.9 अरब डॉलर में खरीदे. वहीं कतर ने इतने ही रफाल विमानों के लिए 7.2 अरब डॉलर खर्च किए हैं. साफ है कि भारत ने 36 रफ़ाल फाइटर विमानों के लिए 8.9 अरब डॉलर की जो रकम खर्च की है, वो मिस्र और कतर के मुकाबले काफी कम कीमत है. विमान के साथ इसमें लगे हथियारों के सिस्टम, इसके कल-पुर्जों की आपूर्ति और पांच साल तक के रख-रखाव की गारंटी भी भारत को मिली है.

    समझौते के दूसरे हिस्से में जब भारत 108 और विमान खरीदेगा (जो कि भारत में ही बनाए जाएंगे), तो इसकी तकनीक भी फ्रांस भारत को देगा.

    हमें सौदे की कीमत के साथ इस विमान की खूबियां भी देखनी चाहिए. इसमे 150 किलोमीटर तक हवा में मार करने वाली मिसाइलें लगी होंगी. हवा से जमीन पर तीन सौ किलोमीटर तक मार करने वाली मिसाइलें भी इसमें लगाई जा सकती हैं. इसमें इंटरनेशनल लेवल की तकनीक का इस्तेमाल किया गया है. साथ ही विमान उड़ाने वालों को खास इजराइली हेलमेट भी दिए जाएंगे. इन हेलमेट में ही विमान की उड़ान और दूसरी चीज़ों का डिस्प्ले मिलेगा. इस सिस्टम का नाम है टारगो. इसकी मदद से पायलट अपनी उड़ान का रिहर्सल कर सकता है. उसकी प्लानिंग कर सकता है. मतलब ये कि किसी भी हालात में ये हेलमेट पायलट को चौकन्ना रहने में मदद करेंगे. टारगो हेलमेट विमान की सुरक्षा में भी मददगार होगा.

    rafale

    सूत्रों के मुताबिक लागत का 30 फीसद, फ्रांस भारत को लगा देगा. कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक ये रकम पचास फीसद होगी. अगर ऐसा है तो ये बहुत मुनाफे वाला सौदा है.

    रही बात विमान की कीमतों की, तो पिछले पांच सालों में इसके दाम को लेकर तरह-तरह की अटकलें लगाई गई हैं. साथ ही हमें ये भी देखना होगा कि भारत को ऐसे विमानों की कितनी जरूरत है. उनमें से रफाल विमान कितनी जरूरतों पर खरा उतरता है. आखिर भारत ने रफाल को ही क्यों चुना, उसकी वजहें भी देखनी होंगी.

    क्या थे बाकी विकल्प

    भारत जब अपने लिए लड़ाकू विमान तलाश रहा था, तो रफाल के अलावा, बोइंग का F-18 सुपर हॉर्नेट, यूरोफाइटर टाइफ़ून और स्वीडन की साब कंपनी का फाइटर ग्रिपेन भी रेस में थे.

    यही वजह है कि राहुल गांधी कीमतों को लेकर सवाल उठा रहे हैं. रफाल अपने मुकाबले की रेस में चल रहे बाकी विमानों जैसा ही बेहतरीन है. चौथी पीढ़ी के लड़ाकू विमानों में ये किसी से कम नहीं है. हां, हम रूस से मिग 29 और मिग 35 विमान या सुखोई 35 विमान भी सस्ते दाम में खरीद सकते थे. लॉकहीड मार्टिन का अमरीकी विमान F-16 फाइटिंग फाल्कन ब्लॉक 60 भी अपने नए वर्जन में भी बेहतरीन लड़ाकू विमान है. लेकिन हम ने इन विकल्पों को नहीं आजमाया.

    Rahul Gandhi Amit Shah

    शायद इन विमानों के साथ देश के काम आने वाले दूसरे ऑफर सौदे का हिस्सा नहीं थे. रख-रखाव और हथियारों का सिस्टम भी ऐसे सौदों में बहुत अहम होता है. ऐसे में मोदी ने दस साल की हीला-हवाली खत्म की. देश की सुरक्षा के लिए जरूरी ये सौदा फटाफट कर लिया. इसके लिए मोदी पर आरोप लगाना कहां तक ठीक है, ये देखना होगा.

    शायद यही पहलू थे जिनकी वजह से प्रधानमंत्री मोदी ने रफाल विमान खरीदने का फैसला किया. उन्होंने 2014 का सौदा रद्द करके फ्रांस से सीधे 36 रफाल विमान खरीदने का फैसला किया. हालांकि इसमें विमान की तकनीक के ट्रांसफर की बात सौदे में नहीं शामिल थी. उस वक्त मकसद ये था कि विमानों की खरीद की बेहद धीमी प्रक्रिया को रफ्तार दी जाए. भारत ने लड़ाकू विमानों के सौदे की प्रक्रिया 2007 में शुरू की थी. मोदी के फैसला लेने तक हम किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सके थे. काम सुस्त रफ्तार से चल रहा था. इस दौरान हमारी वायुसेना की ताकत कमजोर होती जा रही थी. पुराने विमान लगातार हादसे के शिकार हो रहे थे.

    ऐसे में अगर राहुल गांधी के पास इस सौदे मे गड़बड़ी के पुख्ता सबूत हैं, तो उन्हें इसे देश के सामने रखना चाहिए.

    अगर कांग्रेस को इस बात का इतना ही यकीन था कि उसने बेहतर शर्तों पर सौदा कर लिया होता, तो कांग्रेस की सरकार ने ये सौदा क्यों नहीं कर लिया? आखिर सौदे की शर्तों पर 2012 में ही बातचीत शुरू हो चुकी थी. तब तो कांग्रेस ही सत्ता में थी. जब हम सौदे की कीमत की बात करें, तो ये भी देखें कि उस वक्त और आज में करेंसी का रेट क्या है.

    अगर राहुल गांधी के पास इस बात के पूरे सबूत हैं कि इस सौदे से किसी एक उद्योगपति को फायदा पहुंचाया गया, तो वो सबूत के साथ ये बात सब के सामने रखें. वरना उन्हें इस सौदे पर सवाल उठाने के बजाय अपना मुंह बंद रखना चाहिए था.

    यहां ये देखना होगा कि ये कोई सियासी मुद्दा नहीं, देश की सुरक्षा का मसला है. आप यूं ही किसी सौदे पर इसलिए सवाल नहीं उठा सकते क्योंकि बीजेपी ने ऑगस्टा वेस्टलैंड सौदे में आप को घेर रखा है.

    इस बात की संभावना भी कम ही है कि रफाल सौदे के लिए फ्रांस ने रिलायंस डिफेंस के साथ 30 हजार करोड़ के ज्वाइंट वेंचर का समझौता कर लिया हो. ये सौदा तो ऐसा है जो दोनों देशों के लिए फायदे का सौदा है. इससे सिर्फ रिलायंस को फायदा हुआ हो, ये कहना गलत होगा.

    अगर रिलायंस ने कांग्रेस और राहुल गांधी के खिलाफ मुकदमा करने का तय कर लिया तो कानून उनके साथ होगा. रिलायंस ने तो एक बयान में कहा कि, 'सरकार ने 24 जून 2016 को जो नीति तय की थी उसके मुताबिक रक्षा क्षेत्र में 49 फीसद विदेशी निवेश की छूट है. इसके लिए किसी मंजूरी की जरूरत नहीं होगी. न तो कैबिनेट की और न ही कैबिनेट की सुरक्षा कमेटी की. इन दोनों को ऐसे किसी सौदे की जानकारी देने की भी जरूरी नहीं होगी. दो कंपनियां आपसी सहमति से कभी भी ऐसा सौदा कर सकती हैं'.

    हमें एक और बात समझनी होगी कि रफाल की बहुत मांग नहीं है. इसे बनाने वाली फ्रांस की कंपनी डसाल्ट को आज की तारीख में अपनी बिक्री बढ़ाने की जरूरत है. इस मामले में मोदी को तो इस बात का श्रेय दिया जाना चाहिए कि उन्होंने हमारी कमजोर होती वायुसेना को 36 विमानों की ताकत का फौरी इंजेक्शन दिया है.

    इस सौदे का विकल्प क्या होता? नए सिरे से सौदेबाजी. नई शर्तों पर खींच-तान. दूसरी कंपनियों से बातचीत. मगर इसमें काफी वक्त लगता. इस दौरान हमारी कमजोर होती वायुसेना के सामने चीन और पाकिस्तान से मुकाबले की चुनौती होती.

    श्रीमान राहुल गांधी जी, देश के सामने खड़ी इस चुनौती की क्या कीमत होती?

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