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देहरादून।

कहते हैं अगर इंसान ठान ले तो कोई भी कार्य नामुमकिन नहीं। यदि बात हो किसी खिलाड़ी के खेल के प्रति जुनून की तो उसकी मेहनत के आगे विपत्तियां भी बौनी नजर आती हैं। ऐसा ही एक उदाहरण पेश किया है दून के युवा धावक सूरज पंवार ने। चाय बागान में नंगे पैर दौड़कर खुद को विश्व स्तर का धावक बनाने वाले एथलीट सूरज युवाओं के लिए प्रेरणा बने हुए हैं। यूथ ओलंपिक में रजत पदक जीतकर युवा एथलीट सूरज पंवार ने उन सभी युवाओं के लिए मिसाल कायम की है, जो विपरीत परिस्थिति और संसाधनों के अभाव का बहाना बनाकर कामयाबी की राह त्याग देते हैं। 

यूथ ओलंपिक में पहली बार प्रतिभाग करते हुए पांच हजार मीटर वाक रेस में रजत पदक जीतना सूरज की दृढ़ जिजीविषा को तो दर्शाता ही है, बल्कि यह भी साबित करता है कि दृढ़ निश्चय और कड़ी मेहनत के आगे कठिनाइयां भी बेबस हो जाती हैं।

प्रेमनगर क्षेत्र के कारबारी गांव के रहने वाले सूरज पंवार ने अक्टूबर 2018 में यूथ ओलंपिक में रजत पदक जीतकर इतिहास रचा। सूरज पंवार यूथ ओलंपिक में ट्रैक एंड फील्ड इवेंट में पदक जीतने वाले पहले भारतीय एथलीट बने। यह देश के साथ उत्तराखंड के लिए स्वर्णिम उपलब्धि थी।

सूरज की यह उपलब्धि इतनी आसान भी नहीं थी। विपरीत परिस्थितियों में सूरज ने अपने मुकाम को पाने के लिए जो संघर्ष किया वह युवाओं के लिए प्रेरणा का प्रतिबिम्ब बन गया।

सूरज पंवार को बचपन से ही दौड़ का शौक था। धीरे-धीरे यह शौक जुनून में बदल गया और मेहनत कड़ी होने लगी। सूरज ने ठान लिया कि एथलेटिक्स में ही उनका भविष्य है और उन्हें इसी क्षेत्र में नाम कमाना है।

सूरज के सामने परिस्थितियां चाहे जैसी भी रही हों, लेकिन उन्होंने कभी दौडऩा नहीं छोड़ा। कभी नंगे पैर, चप्पल में तो कभी फटे पुराने जूते पहने, लेकिन दौड़ना जारी रखा। इसी जज्बे के साथ सूरज आज भी अपनी कामयाबी की इबारत लिखते जा रहें है। 

सूरज पंवार ने कहा कि उनका फोकस 2024 में आयोजित होने वाले ओलंपिक गेम्स पर है। वह तैयारी कर ओलंपिक में देश के लिए सोना जीतना चाहते है। इसके अलावा 2022 में होने वाले कॉमनवेल्थ गेम्स में भी उन्हें पदक की उम्मीद है। 

सूरज ने बताया कि 2020 में उन्हें अंतिम जूनियर टूर्नामेंट खेलना है। इसमें पदक जीतकर वह सीनियर वर्ग में दस्तक देंगे। उन्होंने बताया कि सितंबर में जूनियर विश्व चैंपियनशिप के लिए क्वालीफायर है। अभी उसी की तैयारी में जुटे हुए हैं।

धावक के जीवन में गुरु का बड़ा महत्व

खिलाड़ी किसी भी खेल का हो, उसके जीवन में गुरु का बड़ा महत्व होता है। ऐसा ही कुछ सूरज पंवार के साथ भी हुआ। सूरज पंवार में दौड़ने की लगन तो थी, लेकिन उसे नई तकनीक सिखाने वाला नहीं मिला था। 

साल 2016 में सूरज पंवार स्पोर्टस कॉलेज एक्सलेंसी विंग के कोच अनूप बिष्ट से मिले। अनूप बिष्ट ने सूरज को लंबी दौड़ के लिए तैयार करना शुरू किया। सूरज ने लगन से बहुत ही कम समय में एक्सीलेंस विंग के मानकों को पूरा करते हुए विंग में जगह बना ली। फिर यहां से सूरज सफलता की बुनियाद रखी। सूरज की सादगी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सूरज आज के नव युग में भी फोन से दूर रहते हैं। 

ओलंपियन मनीष बने प्रेरणादायक

सूरज पंवार कहते है कि 2013 में जब मनीष रावत ने ओलंपिक में प्रतिभाग किया था, तब तक उन्हें वाक रेस इवेंट के बारे में नहीं पता था, इसके बाद उन्होंने वाक रेस के बारे में जानकारी जुटाई। तब 2016 में स्पोट्र्स कॉलेज के कोच अनुप बिष्ट के पास पहुंचे। सूरज ने बताया कि 2018 के यूथ ओलंपिक में उन्होंने मनीष रावत के दिए जूते पहनकर प्रतिभाग किया था।

सूरज की उपलब्धियां

-यूथ ओलंपिक गेम्स 2018 में 5000 मीटर वाक रेस में रजत पदक

-यूथ ओलंपिक एशिया एरिया क्वालीफिकेशन में दस हजार मीटर वाक रेस में रजत पदक

-नेशनल यूथ एथलेटिक्स चैंपियनशिप में दस किमी वाक रेस में रजत पदक

-छठी नेशनल रेस वाकिंग चैंपियनशिप में दस किमी वाक रेस में स्वर्ण पदक

-नेशनल जूनियर एथलेटिक्स चैंपियनशिप में दस किमी वाक रेस में कांस्य पदक

-यूथ एशियन एथलेटिक्स चैंपियनशिप में प्रतिभाग

-32वीं नेशनल जूनियर एथलेटिक्स चैंपियनशिप में प्रतिभाग