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    नई दिल्ली। 

    दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत का शासन चलाने वाला दुनिया का बड़ा लिखित संविधान लिखित ही नहीं बल्कि हस्तलिखित भी था जिसे मसौदा लिखने वाली समिति ने हिंदी, अंग्रेजी में हाथ से लिखकर कैलिग्राफ किया था और इसमें कोई टाइपिंग या प्रिंटिंग शामिल नहीं थी।
     
    दरअसल, हाथ से लिखे गए इस महान दस्तावेज को छापने का गौरव देहरादून स्थित सर्वे ऑफ इंण्डिया को मिला जिसे उसने लगभग 5 सालों में पूरा किया। उस समय छपी संविधान की हजार ऐतिहासिक प्रतियों में से एक प्रति संसद के पुस्तकालय में तो एक अन्य प्रति को आज भी देहरादून में सुरक्षित रखा गया है।

    सर्वे ऑफ  इंडिया ने छापा था संविधान
    संविधान सभा द्वारा 2 वर्ष, 11 माह, 18 दिन में कुल 114 दिन की बहसों के बाद डॉ. भीमराव आम्बेडकर द्वारा (ड्राफ्ट किए गए) तैयार किए गए संविधान का ढांचा जब 26 नवम्बर 1949 को अंगीकृत किया गया तो उसे प्रकाशित करने की भी एक चुनौती थी क्योंकि मसौदा समिति और खासकर भारतीय नेतृत्व भारतीय लोकतंत्र के इस पवित्र ग्रन्थ की मौलिकता, स्वरूप और स्मृतियों को अक्षुण बनाए रखने के लिए उसे उसी हस्तनिर्मित साजसज्जा के साथ हूबहू प्रकाशित करना चाहता था।

    चूंकि उस समय प्रिंटिंग की आज की तरह अत्याधुनिक सुविधाएं उपलब्ध नहीं थीं और उस समय के लिहाज से सबसे बड़ा एवं सुसज्जित छापाखाना केवल देहरादून स्थित भारतीय सर्वेक्षण विभाग या सर्वे ऑफ इंडिया के पास ही उपलब्ध था, इसलिए संविधान सभा ने इसी विभाग को इस ऐतिहासिक जिम्मेदारी का निर्वहन करने का दायित्व सौंपा।

    विभाग के देहरादून स्थित नॉदर्न प्रिंटिंग ग्रुप ने पहली बार संविधान की एक हजार प्रतियां प्रकाशित की। इसे फोटोलिथोग्राफिक तकनीक से प्रकाशित किया गया। हाथ से लिखी गई मूल प्रति नई दिल्ली के नेशनल म्यूजियम में मौजूद है, जबकि यादगार के तौर पर संविधान की एक प्रति संसद के पुस्तकालय में तो एक अन्य प्रति आज भी देहरादून के सर्वे ऑफ इंडिया के म्यूजियम में सुरक्षित है। 

     

    भारत का संविधान दुनिया का सबसे लंबा लिखित संविधान है।
    भारत का संविधान दुनिया का सबसे लंबा लिखित संविधान है। - फोटो : फाइल फोटो
    सुलेख और चित्रण का बेजोड़ नमूना है संविधान की पाण्डुलिपि
    इस प्रति के परिचय विवरण के अनुसार दिल्ली निवासी प्रेम बिहारी नारायण रायजादा (सक्सेना) ने इसे इटेलिक स्टाइल में बेहद खूबसूरती से लिखा था जबकि शांति निकेतन के कलाकारों ने इस दस्तावेज के प्रत्येक पृष्ठ को बहुत ही दक्षता से सजाया-संवारा था।

    देहरादून में ही संविधान की मूल प्रति के प्रत्येक पृष्ठ को कैलीग्राफ कर फोटोलिथोग्राफिक तकनीक से प्रकाशित किया गया गया। नन्दलाल रायजादा ने इसके विभिन्न पृष्ठों पर भारतीय उपहाद्वीप प्रागैतिहासिक मोनजादाड़ों से लेकर सिन्धु घाटी की सभ्यताओं एवं संस्कृतियों का चित्रण किया है।

    रायजादा ने सुलेख के लिए अपने होल्डर और 303 नंबर की निब का प्रयोग किया है। इस सुलेख और पन्ने को नन्द लाल बोस एवं उनके शिष्यों ने सुसज्जित किया है। बोस को भारत के कलाकार लाॅरियेट के रूप में भी जाना जाता है।

    कलाकार नन्दलाल बोस को उनके शिष्य बीहर राममनोहर सिन्हा, दीनानाथ, भार्गव, कृपाल सिंह शेखावत, पेरुमल, विनायक शिवराम मासोजी और अन्य कलाकार, जिनमें बोस के तीन बच्चे, बिस्वरूप बोस और उनकी पत्नी निबदिता, गौरी भांजा और उनकी बेटी बानी पटेल, जमुना सेन, अमला बोस, बाद में एबीपी समूह के अध्यक्ष कनैललाल सरकार की पत्नी, जगदीश मित्तल और धीरेंद्र कृष्ण देब बर्मन भी चित्रकारों की टीम में शामिल थे। सुलेख में गोल्डी लीफ और स्टोन कलर का प्रयोग किया गया है।

    क्यों खास है संविधान की लिखित और मौलिक प्रति?  
    प्रत्येक पृष्ठ पर टेक्स्ट विंडो के नीचे बाईं ओर प्रेम के रूप में सुलेखक के नाम पर हस्ताक्षर किए गए हैं। इलस्ट्रेटर का नाम प्रत्येक सचित्र पृष्ठ फ्रेम के नीचे बाईं ओर हस्ताक्षरित है। चित्रों पर अलग से हस्ताक्षर किए गए हैं।

    पांडुलिपि एक हजार साल की मियाद वाले सूक्ष्मीजीवी रोधक 45.7 सेमी × 58.4 सेमी आकार के चर्मपत्र शीट पर लिखा गया था। तैयार पांडुलिपि में 234 पृष्ठ शामिल थे जिसका वजन 13 किलो था। संसद के पुस्तकालय में अंग्रेजी और हिंदी पांडुलिपियों के संरक्षण के लिए कांच के शोकेश को राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला, नई दिल्ली और गेटी संरक्षण संस्थान, संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा संयुक्त रूप से विकसित किया गया था और  1964 में स्थापित किया गया था। 
     

     

    संविधान दिवस पर सुदर्शन पटनायक की कलाकृति
    संविधान दिवस पर सुदर्शन पटनायक की कलाकृति - फोटो : ANI
    भारत का प्राचीनतम विभाग है सर्वे ऑफ इंडिया
    भारतीय सर्वेक्षण विभाग, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के अधीन राष्ट्रीय सर्वेक्षण और मानचित्रण के लिए भारत सरकार का एक प्राचीनतम वैज्ञानिक विभाग है। यही विभाग देश की रक्षा जरूरतों के साथ ही विकास कार्यों के लिए प्रमाणिक मानचित्र अपनी विशालकाय प्रिंटिंग मशीनों से मुद्रित करता रहा है।

    ईस्ट इंडिया कम्पनी द्वारा इसकी स्थापना 1767 में की गई थी। सन् 1757 में, प्लासी की लड़ाई में, ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल के शासक सिराज-उद-दौला को हराकर भारत में अपनी जड़ें जमानी शुरू तो अन्य क्षेत्रों को जीतने और सैन्य अभियान चलाने के लिए उस समय के नक्शों की कमी थी, इसलिए उन्होंने भारत का नक्शा तैयार करने का फैसला किया। इस उदे्श्य से सन् 1767 में क्लाइव ने मेजर रेनेल को सर्वेयर जनरल ऑफ बंगाल नियुक्त किया।

    10 अप्रैल 1802 से मेजर विलियम लैम्बटन ने जीटीएस का कार्य प्रारम्भ किया था और मद्रास वैधशाला के नजदीक कैप कैमरिन से बेंगलूरु तक आधार रेखा के मापन द्वारा ग्रेट आर्क को मापने का कार्य प्रारम्भ किया और आर्क को बाद में हिमालय के उत्तर में बहुत परिशुद्धता से मसूरी की पहाड़ियों में बिनोग तक बढ़ाया।

    सन् 1815 में कर्नल कालिन मैकेंजी भारत के महासर्वेक्षक बने तो उन्होंने ज्योडीय सर्वेक्षण का कार्य विलियम लैम्बटन के नेतृत्व में आगे बढ़ाया एवं सन् 1818 में कैप्टन जॉर्ज एवरेस्ट इस कार्य में शामिल हुए।

    सन् 1930 में कर्नल जॉर्ज एवरेस्ट विधिवत् भारत के महासर्वेक्षक बन गए। सन् 1843 में कर्नल जॉर्ज एवरेस्ट की सेवानिवृत्ति के पश्चात एंड्रयू स्काटबाग भारत के महासर्वेक्षक बने। उन्होंने इस कार्य को आगे बढाते हुए सन् 1863 मे वृहत त्रिकोणीयन श्रृंखला समायोजित कराया, जिसका परिणाम प्रथम श्रेणी श्रृंखला के अन्र्तगत पाया गया।

    सन् 1878 में भारत के नए महासर्वेक्षक जेम्स टी वाकर ने टोपोग्राफिकल सर्वेक्षण एवं ग्रेट ट्रिगनोमेट्रीकल सर्वेक्षण को एकीकरण कर उसका मुख्यालय देहरादून बना दिया। वर्तमान में भारतीय सर्वेक्षण विभाग को 8 जोनों, 23 भू-स्थानिक आंकड़ा केन्द्रों/क्षेत्रीय निदेशालयों, 6 विशिष्ट निदेशालयों और 29 राज्यों तथा 9 स्वायत्तशासी क्षेत्रों को समाहित करते हुए 1 शिक्षण निदेशालय में संगठित किया गया है।

    अम्बेडकर जयंती पर संविधान दिवस
    कैबिनेट मिशन की संस्तुतियों के आधार पर भारतीय संविधान का निर्माण करने वाली संविधान सभा का गठन जुलाई, 1946 में किया गया था। जिनमें 292 ब्रिटिश प्रांतों के प्रतिनिधि, 4 चीफ कमिश्नर क्षेत्रों के प्रतिनिधि एवं 93 देशी रियासतों के प्रतिनिधि थे।

    सभा की पहली बैठक 9 दिसम्बर 1946 को हुई, जिसमें वरिष्ठतम सांसद डॉ सचिदानंद सिन्हा अस्थाई अध्यक्ष बने, जबकि 11 दिसम्बर 1946 को डॉ राजेन्द्र प्रसाद को स्थाई अध्यक्ष चुना गया। देश के विभाजन से यह सदस्य संख्या घटकर 299 रह गई। चूंकि जिन्ना के नेतृत्व वाली मुस्लिम लीग की मांग पर पाकिस्तान के लिए तत्कालीन गर्वनर जनरल माउण्टबेटन के प्लान के तहत 3 जून 1947 को अलग संविधान सभा बनाई गई। 

    बता दें कि भारत का संविधान विश्व के किसी भी गणतांत्रिक देश का सबसे लंबा लिखित संविधान है जो 465 अनुच्छेद, 12 अनुसूचियों और 22 भागों में विभाजित है। जबकि इसके निर्माण के समय मूल संविधान में 395 अनुच्छेद, जो 22 भागों में विभाजित थे इसमें केवल 8 अनुसूचियां थीं। डॉ बी.आर. अम्बेडकर ड्राफ्टिंग कमेटी के चेयरमैन थे।

    संविधान सभा में 8 मुख्य समितियां एवं 15 अन्य समितियां थी। संविधान सभा पर अनुमानित खर्च 1 करोड़ रुपए आया था। संविधान 26 नवंबर, 1949 में अंगीकार किया गया था, इसलिए देश में 26 नवंबर को संविधान दिवस के तौर पर मनाया जाता है।

    यद्यपि आंबेडकरवादियों द्वारा दशकों पूर्व से अम्बेडकर जयंती पर ‘संविधान दिवस’ मनाया जाता है, लेकिन भारत सरकार द्वारा पहली बार 26 नवम्बर 2015 से ‘‘संविधान दिवस मनाया जा रहा है। डॉ॰ भीमराव आंबेडकर के इस महान योगदान के रूप में 26 नवम्बर को संविधान दिवसष् मनाया गया।
     

     

    महिलाएं जिन्होंने संविधान बनाने में मदद की
    महिलाएं जिन्होंने संविधान बनाने में मदद की - फोटो : social media
    हमारा संविधान लचीला भी और कठोर भी 
    भारत का संविधान जितना लंबा और विस्तृत है उतना ही लचीला भी है। संविधान निर्माताओं ने भारत की भौगोलिक, सास्कृतिक एवं धार्मिक विधिताओं को ध्यान में रखने के साथ ही भविष्य की बदलती परिस्थितियों को भी ध्यान में रख कर इसका निर्माण किया था।

    लिहाजा इसे एक ‘जीवित दस्तावेज’ कहा जा सकता है, जिसने न केवल भारतीय समाज के विकास को आकार दिया है, बल्कि इसमें 70 साल बाद भी बदलती परिस्थितियों में भी स्वयं को प्रासंगिक बनाए रखने की अदृभुत क्षमता बनाए रखी।

    वास्तव में हमारा संविधान जितना कठोर है उतना ही लचीला भी है। 1951 से लेकर मार्च 2019 तक हमारे संविधान में 104 संशोधन हो चुके हैं। पहला संशोधन तो संविधान लागू होने के 15 माह बाद ही करना पड़ा था जिसे संसद में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा 10 मई 1951 को पेश किया था और 18 जून 1951 को लागू हो गया था।

    संविधान के इस प्रथम संशोधन के तहत संविधान के अनुच्छेद 15, 19, 31 एवं 31 बी में संशोधन कर मौलिक अधिकारों को तर्क संगत करने के साथ ही भाषण तथा अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार आम आदमी को दिया गया। उसी संशोधन के तहत अनुच्छेद 87, 174, 342 एवं 376 में संशोधन कर अनुसूचित जातियों और जनजातियों को मिलने वाले संवैधानिक संरक्षण को पुष्ट करने के साथ ही संविधान में 9वीं अनुसूची जोड़ कर विभिन्न राज्यों के भूमि सुधार एवं जमींदारी उन्मूलन कानूनों का रास्ता प्रशस्त किया गया।

    प्रस्तावना में ही संविधान की आत्मा के दर्शन
    भारतीय संविधान की दृढ़ता के साथ ही लचीलेपन और दूरदृष्टि का एक और प्रमाण इसकी प्रस्तावना है जिसे संविधान का सार या आत्मा भी कहा जाता है। लिहाजा कहा जाता है कि विधायिका संविधान के प्रावधानों को तो बदल सकती है मगर उसकी भावना को नहीं बदल सकती। इसमें बुनियादी आदर्श, उद्देश्य और दार्शनिक भारत के संविधान की अवधारणा शामिल है।

    इस प्रस्तावना में कहा गया है कि, ‘‘हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढाने के लिए दृढ संकल्प होकर इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।’’

    1976 में 42वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा इसमें संशोधन किया गया था जिसमें तीन नए शब्द समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और अखंडता को जोड़ा गया था। यह भारत के सभी नागरिकों के लिए न्याय, स्वतंत्रता, समानता को सुरक्षित करती है और लोगों के बीच भाई चारे को बढावा देती है।

    लेकिन हम भारत के लोग कहां ?
    दुनियां के सबसे बड़े लोकतंत्र का शासन विधान संचालित करने वाले दुनिया के सबसे बड़े लिखित संविधान को इसके अंगीकरण के 70 साल पूरे हो रहे हैं, मगर कई मामलों में अब भी दुनिया में बेमिसाल होने के बावजूद ‘‘हम भारत के लोग’’ की भावना से प्रेरित ‘हम भारत के लोगों’ द्वारा ‘हम भारत के लोगों’ के लिए यह जो बेमिसाल दस्तावेज तैयार किया गया था उसमें बहुत ही गहराई तक स्थापित ‘‘हम भारत के लोग’’ की मूल भावना लुप्त होती जा रही है, जो कि हमारे राष्ट्र की एकता और अखण्डता के लिए हानिकारक है।

    हम की श्रेणी में धर्म, जाति, वर्ग, समुदाय, भाषा भाषी और क्षेत्रवासी आ गए हैं। कुछ लोग भारत पर अपना पट्टा या एकाधिकार मान बैठे हैं। समाज की एकता खण्डित होने से समाज के असली मुद्दे गौण होते जा रहे हैं और भावनात्मक मुद्दे जिनका गरीबी, बेरोजगारी, बीमारी एवं महंगाई जैसे ज्वलंत मुद्दों से कोई वास्ता नहीं है। इसीलिए अयोग्य लोग भी शासन में पहुंच रहे हैं।

    संप्रभुता, समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र, गणराज्य, न्याय, स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे शब्दों में ही संविधान की मूल भावना समाहित है लेकिन इन शब्दों की मनमानी व्याख्या होने लगी है। अदालतों में 3 करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं जिसका मतलब है कि लोगों को समय से न्याय नहीं मिल रहा है। न्याय भी साधन सम्पन्न लोगों के लिए जितना सुलभ है आम आदमी के लिए उतना ही दुर्लभ हो गया है।
     
    डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें [email protected] पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।