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  • क्या है जो मोदी को महान बनने से रोकता है

कर्नाटक।

तमाम रैलियों में अपने भाषणों के जरिए जनता को रिझाने वाले नरेंद्र मोदी कर्नाटक में वो छाप नहीं छोड़ सके, जिसके लिए जाने जाते हैं। वे हिंदी में बोलते रहे और सामने मौजूद ठेठ कन्नड़भाषी जनता उनकी बात ही समझ नहीं सकी। यहां तक कि मंच पर मौजूद कई स्थानीय भाजपा नेता भी मोदी की पूरी बात समझ नहीं सके। रैली में मौजूद जनता के हाव-भाव ने खुद इसकी गवाही दी। हिंदी भाषी राज्यों की रैलियों में जितनी तालियां मोदी के भाषण पर बजतीं हैं, उतनी मोदी की रैली के दौरान नहीं बजीं। हिंदी में मोदी ने सरकारी योजनाओं और अपनी उपलब्धियों को आंकड़ों के जरिए बताया, मगर सारी बातें जनता के सिर के ऊपर से निकल गईं। राष्ट्रीय नेताओं के स्तर से स्थानीय जनता तक सही तरीके से संवाद कायम न हो पाने पर कर्नाटक की बीजेपी इकाई खासी चिंतित है। अब आगे के लिए ट्रांसलेटर की व्यवस्था पर जोर देने की तैयारी है।

हुआ दरअसल यूं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली में कन्नड़ भाषा के अनुवाद की व्यवस्था नहीं थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमेशा की तरह हिंदी में बोलते रहे, मगर सामने जनता का हाव-भाव देखकर लगा कि वे हिंदी में मोदी की बातें नहीं समझ पा रहीं है। मोदी ने हिंदी में तमाम आंकड़ों से भी सरकार की उपलब्धियों का गुणगान किया, मगर वो बात भी अधिकांश जनता तक नहीं पहुंच सकी। द हिंदू में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक एक भाजपा नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि प्रधानमंत्री मोदी की बातें उनके जैसे तमाम स्थानीय नेताओं को भी समझ में नहीं आ सकी। दरअसल पहले भाजपा की रैलियों के लिए एक स्थाई कन्नड़ ट्रांसलेटर उपलब्ध रहता था। मगर इधऱ बीच से पार्टी से उसका साथ छूट गया है। तब से भाजपा को ऐसे कार्यक्रमों में असहज स्थिति का सामना करना पड़ रहा है, जिनमें राष्ट्रीय स्तर के हिंदीभाषी नेता जनता को संबोधित करते हैं।

एक भाजपा नेता ने बताया कि जनवरी में चित्रदुर्ग में आयोजित कार्यक्रम में पार्टी को बहुत असहज स्थिति का सामना तब करना पड़ा,जब पार्टी  अध्यक्ष अमित शाह ने जनता से पूछा-क्या वे बीएस येदुरप्पा को मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं ? इस पर जनता ने नो-नो कह दिया। क्योंकि जनता अमित शाह की बात समझ ही नहीं पाई। इस पर भाषण के दौरान ही आनन-फानन एक ट्रांसलेटर की व्यवस्था हुई। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की बेंगलुरु रैली के दौरान भी कोई ट्रांसलेटर नहीं था, जबकि राजनाथ सिंह की पिछले साल दिसंबर में हुई रैली के दौरान एक ट्रांसलेटर था। कन्नड़ कार्यकर्ताओं की संस्था बनवासी  के अध्यक्ष आनंद गुरु के मुताबिक हिंदी या अंग्रेजी भाषण का कन्नड़ में अनुवाद जनता के बीच प्रभावी कम्युनिकेशन के लिए आवश्यक है। भाजपा हिंदी के जरिए पूरे राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोने की कोशिश करती है, जबकि दक्षिण इसे स्वीकार नहीं करता है। यहां तक कि कांग्रेस भी रैलियों में नेताओं के हिंदी या अंग्रेजी के भाषण की कन्नड़ में ट्रांसलेशन की व्यवस्था कर जनता तक बात पहुंचाने की कोशिश करती है। आनंद गुरु ने कहा कि-“हम  राष्ट्रीय नेताओं से कन्नड़ में बोलने की मांग नहीं करते मगर अनुवाद की जरूर इच्छा रखते हैं। राहुल गांधी भी अगले हफ्त से कर्नाटक में कैंपेन शुरू करने वाले हैं। अब सभी की निगाहें उनकी रणनीति पर हैं। ”

 

 

 

 

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