रात के एक बजे के आसपास, जब पूरा गांव सो रहा था, एनांडेश्वर कूल स्टोरेज के अंदर एक छोटी सी बिजली की चिंगारी ने एक भयानक आग में बदल दिया। ये आग केवल ठंडा भंडारण का नुकसान नहीं, बल्कि एक युवा आदमी की जान भी ले गई। ऋषभ शर्मा, 25 साल का युवा, जो इस सुविधा का ऑपरेटर था, आग में गंभीर रूप से जल गया। लेकिन जब तक उसके परिवार को नहीं बताया गया, तब तक उसकी जान चली गई। ये कहानी केवल आग की नहीं, बल्कि उस अनदेखी और निर्मम बेइमानी की है जिसने एक बेटे को उसके परिवार से छीन लिया।
आग का विस्तार और छिपाव का सच
2025 की 11 नवंबर की रात, बारा गांव, कानपुर देहात में बिजली के शॉर्ट सर्किट से आग लग गई। अमर उजाला की रिपोर्ट के मुताबिक, आग इतनी तेज थी कि वह 32 घंटे तक बरकरार रही। ऋषभ और एक और कर्मचारी अंक्रित दोनों जल गए। लेकिन यहां का सबसे बड़ा दर्द ये नहीं कि आग लगी, बल्कि ये है कि एनांडेश्वर कूल स्टोरेज की प्रबंधन टीम ने घटना को छिपाया। ऋषभ को रात में ही अस्पताल ले जाया गया, लेकिन उसके परिवार को अगली सुबह तक बताया गया कि "दुर्घटना" हुई है। जब परिवार ने लखनऊ के अस्पताल में पहुंचकर देखा, तो ऋषभ की मौत हो चुकी थी। लाइव हिंदुस्तान की रिपोर्ट के अनुसार, प्रबंधन ने तब तक आग और जलने की बात छिपाई, जब तक पुलिस और परिवार ने दबाव बनाया।
शव के साथ हाईवे पर विरोध: एक परिवार का अंतिम अपील
बुधवार को दोपहर 4 बजे, जब पोस्टमॉर्टम पूरा हुआ, ऋषभ के परिवार ने एक ऐसा कदम उठाया जिसने पूरे क्षेत्र को हिला दिया। ट्रैक्टर-ट्रॉली पर उसका शव लाकर, वे कानपुर-एटावा हाईवे पर रख दिया। ये एक अपील थी — न्याय की, न कि बस बदले की। लगभग तीन किलोमीटर तक, बारा टोल प्लाजा से जैनपुर तक, ट्रैफिक जाम हो गया। दोनों दिशाओं की गाड़ियां फंस गईं। लोग रो रहे थे, गांव वाले गुस्से में थे, और एक युवक की मौत के लिए जवाबदेही मांग रहे थे।
राजनीतिक हस्तक्षेप और आर्थिक बदलाव
इस विरोध को देखकर प्रतिभा शुक्ला, राज्य मंत्री, और पूर्व सांसद अनिल शुक्ला वर्शी घटनास्थल पर पहुंचे। उन्होंने परिवार को संबोधित किया, उनके दर्द को समझा। लेकिन बात बात पर विरोध जारी रहा। फिर एक समझौता हुआ: 16 लाख रुपये की मुआवजा राशि। इसके बाद ही परिवार ने शव ले जाने की अनुमति दी। ये रकम किसी नियम का हिस्सा नहीं थी — ये एक विरोध का परिणाम था। एक युवा की जान की कीमत के तौर पर ये राशि बहुत कम है। लेकिन ये एक आवाज बन गई।
क्यों ये घटना बड़ी है?
कानपुर देहात में ठंडा भंडारण इतना बड़ा उद्योग नहीं है, लेकिन ये स्थानीय खेती और डेयरी उत्पादों के लिए जान-माल है। इन सुविधाओं में आग के लिए कोई सुरक्षा व्यवस्था नहीं होती। कर्मचारियों को बिना ट्रेनिंग के नौकरी दी जाती है। जब आग लगती है, तो प्रबंधन जल्दी से बच जाता है — लेकिन श्रमिकों को छोड़ दिया जाता है। ऋषभ की मौत केवल एक दुर्घटना नहीं, बल्कि एक प्रणालीगत असफलता का परिणाम है। इससे पहले भी उत्तर प्रदेश में कई ठंडा भंडारण में आग लगी हैं, लेकिन कोई जांच नहीं हुई। ये एक आम बात है — जिसे लोग बस झेल रहे हैं।
अगला कदम क्या है?
अब तक कोई कानूनी कार्रवाई नहीं हुई है। परिवार ने हत्या का मामला दर्ज करने की मांग की है, लेकिन पुलिस ने अभी तक कोई एफआईआर नहीं दर्ज की है। राज्य सरकार ने एक आंतरिक जांच का आदेश दिया है, लेकिन लोग इस पर भरोसा नहीं कर रहे। अगर इस मामले में कोई जवाबदेही नहीं हुई, तो अगला शिकार कौन होगा? शायद कोई और युवा, जिसका नाम कभी अखबार में नहीं आएगा।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
ऋषभ शर्मा की मौत के लिए कौन जिम्मेदार है?
परिवार और स्थानीय लोग एनांडेश्वर कूल स्टोरेज की प्रबंधन टीम को जिम्मेदार मान रहे हैं, क्योंकि उन्होंने आग के बाद ऋषभ की गंभीर स्थिति को छिपाया और तुरंत इलाज की अनुमति नहीं दी। अगर उसे तुरंत अस्पताल ले जाया गया होता, तो शायद बच जाता। इसलिए परिवार ने हत्या का मामला दर्ज करने की मांग की है।
16 लाख रुपये का मुआवजा क्यों मांगा गया?
ऋषभ 25 साल का था और परिवार का एकमात्र आय स्रोत था। उत्तर प्रदेश में एक श्रमिक की जान की कीमत आमतौर पर 5-8 लाख रुपये होती है, लेकिन इस मामले में विरोध के दबाव में 16 लाख रुपये दिए गए। ये रकम एक अस्थायी समझौता है — न कि कानूनी निर्धारित राशि। परिवार ने इसे स्वीकार किया, लेकिन अभी भी न्याय की मांग जारी है।
क्या इस तरह की घटनाएं पहले भी हुई हैं?
हां, उत्तर प्रदेश में पिछले दो वर्षों में कम से कम चार ठंडा भंडारण में आग लगी हैं — लेकिन किसी भी मामले में कोई जांच नहीं हुई। 2023 में गोरखपुर में एक ऑपरेटर की मौत हुई थी, लेकिन प्रबंधन ने इसे "दुर्घटना" कहकर छिपा दिया। ऋषभ की मौत इसी नियम का एक और उदाहरण है — जहां श्रमिक की जान अनदेखी हो जाती है।
हाईवे पर शव रखने का अर्थ क्या है?
इस तरह का विरोध भारतीय ग्रामीण समाज में एक पुरानी परंपरा है — जब न्याय नहीं मिलता, तो शव को सार्वजनिक जगह पर रखकर लोगों का ध्यान आकर्षित किया जाता है। ये एक अंतिम अपील है — जिसमें दर्द और गुस्सा दोनों शामिल होते हैं। यहां इसने राजनीतिक ध्यान आकर्षित किया, लेकिन ये एक अस्थायी विजय है। असली बदलाव तभी होगा जब कानून बदलेगा।
क्या अब ठंडा भंडारण के लिए सुरक्षा नियम बदलेंगे?
अभी तक कोई आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है। लेकिन अगर इस मामले को राज्य सरकार ने नजरअंदाज किया, तो आने वाले दिनों में और विरोध हो सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में ठंडा भंडारण का विस्तार तेजी से हो रहा है, लेकिन सुरक्षा मानकों का कोई अनुसरण नहीं हो रहा। ये एक जानलेवा खाई है — जिसे अब भरना होगा।