गजब दुनिया | 10-02-2018
देखो ! लगा प्यार का बाजार है,
बेचो ताजमहल तो मिलती मुमताज़ है
रिश्तों की बोली लग रही देखो,
रूपये पैसों के इस नीलामी में
काँटें भी कर रहे शिकार देखो,
फूलों के प्रलोभन दिखाके कैसे I
धर्म भी देखो ले आता अखाड़े में,
दिखाए शांति के परम मार्ग को I
भ्रष्टाचार भी मुस्कुराता देखो,
रक्तबीज सा खुद को फैलाए हुए II
- हमें विश्वास है कि हमारे पाठक स्वरचित रचनाएं ही इस कॉलम के तहत प्रकाशित होने के लिए भेजते हैं। हमारे इस सम्मानित पाठक का भी दावा है कि यह रचना स्वरचित है।
आपकी रचनात्मकता को अमर उजाला काव्य देगा नया मुक़ाम, रचना भेजने के लिए यहां क्लिक करें।